कैदी – आचार्य चतुरसेन शास्त्री
‘आप मेरे मुरब्बी और श्रद्धास्पद हैं. आप इतना आग्रह करते हैं, तो मैं सब कहूंगा. निस्सन्देह आपकी कृपा और प्यार को मैं नहीं भूल सकता. कल मैं इस जेल से छोड़ दिया जाऊंगा, फिर मैं आपका यह प्यार, यह दयापूर्ण व्यवहार, यह पिता के समान पीठ पर थपकियां कहां पाऊंगा, जो गत पांच वर्षों से मेरे जीवन का सहारा रही हैं. यहां आपने मुझे इस प्रिय कोठरी में बंद सुरक्षित…