मैं नैन्सी की लाश बोल रही हूँ
पूरी रात सो न सका वो विभत्स मंज़र देख कर, सोचा कि अगर नैन्सी सच में आज कुछ लिख पाती तो यही लिखती: नमस्कार! मैं नैन्सी की लाश बोल रही हूँ… श्श्श्श…आत्मा। मैं तो लाश थी… सड़ गयी पर आख़िर कैसे आप सभी का ज़मीर सड़ गया? मैं अपने पापा की गुड़िया थी…अम्माँ की परी…लेकिन जिन दरिंदों ने मुझे नोचा, फाड़ा, हवस से जला दिया, वो दरिंदे अभी भी मौज…