शहर से गाँव
शहर से गाँव और गाँव से शहर की यात्रा में ज़िंदगी खो-सी गयी। गाँव में घर से स्कूल का बस्ता लेकर निकला हर इंसान यही कोशिश करता है कि पढ़-लिखकर शहर जाएगा। ग़र शहर नहीं पहुँचा तो कम से कम साहब बनकर किसी अन्य ज़िले या राज्य के गाँव में ही नौकरी कर लेगा। अपने गाँव में रहने की सोच को वो दबा लेता है क्योंकि कितने भी पैसे…