देह की अनन्त यात्रा – डॉ. चित्रलेखा अंशु
ये जो काले रंग का कुर्ता है उसे कभी फेंकती नहीं मैं न तो किसी को देती हूँ। ये भी एक माध्यम है मेरी देह की अनन्त यात्रा को मापने के लिए। जो कभी शंकु हुआ करता था ये कुर्ता सी समय से आधार है, तय करने को मेरी देह रचना जो अब शंकु से दीर्घाकार हो चली है। देह अपनी रचना बदलती है। मन अक्षुण्ण ही रह जाता है।…