Posted on: July 31, 2019 Posted by: लिटरेचर इन इंडिया Comments: 0
प्रेमचंद के जन्मदिवस पर विशेष

दुनिया के महानतम कथाकारों में शुमार मुंशी प्रेमचंद ने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा गोरखपुर की जिस रावत पाठशाला से पाई थी वहां उनका नामोनिशां तक नहीं है। यही नहीं पाठशाला के आधे से ज्यादा हिस्से की दीवारें दरककर आज जीर्णशीर्ण अवस्था में पड़ी हैं। गोरखपुर नगर निगम ने पिछले साल कुछ काम जरूर कराया लेकिन पाठशाला से उसके अति विशिष्ट छात्र प्रेमचंद के रिश्ते को धरोहर के रूप में संजोना भूल गया।

लम्बे अर्से से पाठशाला को देख रहे लोग बताते हैं कि प्रेमचंद के नाम पर कभी यहां एक लाइब्रेरी बनी थी जिसका वजूद करीब तीन दशक पहले खत्म हो गया। अब कोई बोर्ड है, किताबें। पिछले साल उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा भोजपुरी का पहला लोकभूषण सम्मान पाने वाले रवीन्द्र श्रीवास्तव उर्फ जुगानी भाई बताते हैं कि प्रेमचंद के अलावा यह विद्यालय फिराक से भी जुड़ा रहा है। साहित्य की दुनिया के इन दोनों चमकते सितारों ने यहां शुरुआती शिक्षा पाई थी। लेकिन जहां दुनिया भर में अपने महान साहित्यकारों से जुड़ी स्मृतियों को संजो कर रखने का चलन है वहीं गोरखपुर में इस पाठशाला में इन दोनों का नामोनिशां तक नहीं मिलता। किसी को ख्याल ही नहीं आया कि रावत पाठशाला के बच्चों के अंदर यह गौरव जगाया जाए कि वे सदियों में पैदा होने वाली विभूतियों के विद्यालय में पढ़ते हैं।

पिछले साल गिर गई थी छत

पिछले साल रावत पाठशाला की जर्जर छत उस वक्त गिर गई जब मौका मुआइना के लिए नगर निगम की टीम पहुंची थी। इस दुर्घटना में एक अवर अभियंता और ठेकेदार बुरी तरह घायल हो गए थे। पिछले साल ही 8.62 लाख की लागत से विद्यालय के जूनियर सेक्शन में टाइल्स लगाने, मरम्मत और रंग रोगन का काम कराया गया। प्राइमरी सेक्शन में भी कुछ काम हुआ लेकिन आज भी आधा से ज्यादा विद्यालय टूटा फूटा और जीर्ण शीर्ण अवस्था में है। सामने का भवन जरूर थोड़ा चमकदार और बेहतर हो गया है।

वाचनालय शुरू करने की कोशिश नाकाम

विद्यालय के प्रधानाध्यापक वृजनंदन प्रसाद यादव स्वीकार करते हैं कि उनके यहां प्रेमचंद की स्मृति से जुड़ी एक भी चीज नहीं है। वह बताते हैं कि दो साल पहले उन्होंने विभाग के एक-दो अधिकारियों की सहमति से प्रेमचंद के नाम पर वाचनालय शुरू करने की कोशिश की लेकिन संसाधनों के अभाव में यह प्रयास सफल नहीं हो सका।

गोरखपुर से प्रेमचंद का जुड़ाव

मुंशी प्रेमचन्द (बचपन में धनपत राय) के पिता की जब गोरखपुर पोस्टिंग हुई तब इसी रावत पाठशाला में उनकी शिक्षा शुरू हुई। इसे संयोग ही कहेंगे कि प्रेमचंद जहां पढ़े वहीं बगल के नार्मल स्कूल में 1916 से 1921 तक बतौर शिक्षक नौकरी भी की। अपनी प्राथमिक शिक्षा के बाद धनपत राय मिशनरी स्कूल से अंग्रेजी पढ़े और कई अंग्रेजी लेखकों की किताबें पढना शुरू कर दिया। उन्होंने अपना पहला साहित्यिक काम गोरखपुर से उर्दू में शुरू किया। वह यहां पहले पहाड़पुर मोहल्ले में अपने पिता के साथ रहते थे। बाद में नार्मल कैम्पस में ही रहने लगे। आज भी उस मकान के टूटे-फूटे अवशेष वहां मौजूद हैं।

कहा जाता है कि प्रेमचंद पार्क में स्थित मकान में ही उन्होंने ‘कफन’, ‘ईदगाह’, ‘नमक का दरोगा’, ‘रामलीला’, ‘बूढी काकी’, ‘मंत्र’, ‘गबन’ और ‘गोदान’ की पृष्ठभूमि भी तैयार की थी। गोरखपुर के ही बाले मियां मैदान में महात्मा गांधी का भाषण सुनने के बाद प्रेमचंद ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ सरकारी नौकरी से त्यागपत्र देकर विद्रोही तेवर अपना लिए। ‘ईदगाह’ की रचना उन्होंने नार्मल रोड स्थित मुबारक खां शहीद की दरगाह पर लगने वाले मेले को केन्द्र में रखकर की। इसके अलावा ‘नमक का दरोगा’, ‘रामलीला’, गोदान जैसी प्रेमचंद की तमाम कहानियों और उपान्यासों के पात्र गोरखपुर और आसपास के क्षेत्र से लिए गए बताए जाते हैं।

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