Posted on: July 27, 2020 Posted by: लिटरेचर इन इंडिया Comments: 0
Aruna Sitesh अरुणा सीतेश
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भूले-बिसरे रचनाकार : अरुणा सीतेश

डा. अरुणा सीतेश जानी-मानी कथाकार थी। चांद भी अकेला है, वही सपने, कोई एक अधूरापन, लक्ष्मण रेखा और छलांग उनकी कुछ प्रसिद्ध कृतियाँ हैं।

डॉ॰ अरुणा सीतेश (३१ अक्टूबर १९४५-१९ नवंबर २००७) हिंदी की प्रसिद्ध कथाकार थीं। उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से १९६५ में अंग्रेज़ी साहित्य में एम. ए. किया और स्वर्ण पदक भी प्राप्त किया। १९७० में उन्होंने यहीं से डी. फ़िल की उपाधि प्राप्त की। इसके बाद दिल्ली विश्वविद्यालय से संबद्ध इंद्रप्रस्थ कॉलेज में प्राध्यापिका के पद से उन्होंने अपने कार्य-जीवन का प्रारंभ किया। बाद में वे क्रमशः रीडर तथा प्रधानाचार्या के पद पर आसीन हुईं। अंग्रेज़ी की प्राध्यापिका और प्रख्यात शिक्षाविद डॉ॰ अरुणा सीतेश १० वर्षों तक दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रतिष्ठित इन्द्रप्रस्थ महिला कालेज में प्रधानाचार्या के पद पर कार्यरत रहीं।

चाँद भी अकेला है, वही सपने, कोई एक अधूरापन, लक्ष्मण रेखा और छलांग उनकी कुछ प्रसिद्ध कृतियाँ हैं। इनमें से ‘छलांग’ कहानी-संग्रह अपने समय में काफी चर्चित रहा। उन्होंने विष्णु प्रभाकर तथा मोहन राकेश के नाटकों का अंग्रेज़ी अनुवाद भी किया। वे ‘प्रतिभा इंडिया’ पत्रिका की संपादिका रहीं, देश-विदेश में उन्हें अनेक पुरस्कार, सम्मान तथा फैलोशिप प्राप्त हुए, जिसमें उत्तर-प्रदेश हिंदी संस्थान का महादेवी पुरस्कार तथा दिल्ली सरकार का अखिल भारतीय साहित्य परिषद सम्मान प्रमुख हैं।

वे सुप्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार सीतेश आलोक की पत्नी थीं। अपने जीवन के उत्तरार्द्ध में सर्जनात्मक लेखन से जुडने वाली रचनाकार डॉ॰ अरुणा सीतेश ने बहुत कम समय में ही तत्कालीन कथा-लेखिकाओं के बीच अपनी विशिष्ट पहचान स्थापित कर ली थी। उनके कथा- साहित्य के केंद्र में प्रायः स्त्री जीवन की गहन भावनाओं का मार्मिक चित्रण उपस्थित रहता है। उनके द्वारा लिखी गई कहानियाँ जहाँ एक ओर नारी मन के अंतर्द्वंद्व को उजागर करती हैं तो साथ ही मानवीय मनोविज्ञान का विश्लेषण भी करती हैं। उनकी कहानियाँ हमारे आस-पास के जीवन से जुडी तो हैं ही साथ ही इनके माध्यम से बनते- बिगड़ते पारिवारिक और सामाजिक संदर्भों का भी प्रभावी चित्रण करती हैं।


teesari dharti by aruna sitesh
अरुणाजी की रचनाएँ हमारे आस- पास जीते -विचरते पात्रों को ऐसे सहज रूप में कथासूत्र में पिरोती हैं कि पाठक को मात्र पढ़ने का नहीं, अपने जाने -पहचाने समाज को नितांत नए अनुभव एवं नई दृष्‍ट‌ि के साथ पुन: जानने – समझने का सुख भी प्राप्‍त होता है । ये कहानियाँ नसि मन की बूझी- अनबूझी पहेलियों पर प्रकाश डालने में विशेष रूप से सक्षम हैं । नारी-जीवन की व्यथा-कथा तथा आशाओं- अपेक्षाओं का चित्रण अरुणाजी के लेखन की विशेषता है । नारी मन की गहन संवेदनाओं को, बिना नारी-मुक्‍त‌ि का मुखौटा लगाए वे बड़े ही सहज भाव से चित्रित करती हैं । ये सभी कहानियों समय-समय पर धर्मयुग, साप्‍ताहिक हिंदुस्तान, सारिका आदि में प्रकाशित होकर चर्चित हुई थीं ।इस संग्रह में, जीवन के सांध्य काल में लिखी उनकी कहानी ‘ तीसरी धरती ‘ भी है, जिसे ‘ वागर्थ ‘ में पढ़ते ही स्व. कमलेश्‍वर ने अपने द्वारा संपादित तथा साहित्य अकादेमी से प्रकाशनाधीन, हिंदी लेखिकाओं की कालजयी कहानियों के संग्रह के लिए चुना था । डॉ. अरुणा सीतेश के द्वितीय प्रयाण- दिवस पर विनम्र श्रद्धांजली- स्वरूप प्रस्तुत है यह कथा संग्रह तीसरी धरती ।

डॉ. अरुणा सीतेश को श्रद्धांजलि

विगत 19 नवंबर 2007 को सुप्रसिद्ध लेखिका डा. अरुणा सीतेश का दिल्ली के संत परमानन्द अस्पताल में निधन हो गया। वे काफी समय से अस्वस्थ चल रही थीं।

अंग्रेज़ी की प्राध्यापिका और प्रख्यात शिक्षाविद डॉ. अरुणा सीतेश पिछले 10 वर्षों से दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रतिष्ठित इन्द्रप्रस्थ महिला कालेज में प्रधानाचार्या के पद पर कार्यरत थी।

डा. अरुणा सीतेश जानी-मानी कथाकार थी। चांद भी अकेला है, वही सपने, कोई एक अधूरापन, लक्ष्मण रेखा और छलांग उनकी कुछ प्रसिद्ध कृतियाँ हैं। इनमें से ‘छलांग’ कहानी-संग्रह अपने समय में काफी चर्चित रहा। देश-विदेश में उन्हें अनेक पुरस्कार, सम्मान तथा फैलोशिप प्रदान हुए, जिसमें उत्तर-प्रदेश हिंदी संस्थान का महादेवी पुरस्कार तथा दिल्ली सरकार का अखिल भारतीय साहित्य परिषद सम्मान प्रमुख हैं। वे ‘प्रतिभा इंडिया’ पत्रिका की संपादिका भी थी।

1945 जन्मी डॉ. अरुणा सीतेश ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से 1965 में अंग्रेज़ी साहित्य में एम. ए. किया और स्वर्ण पदक भी प्राप्त किया। 1970 में उन्होंने यहीं से डी. फ़िल की उपाधि प्राप्त की। इसके बाद वे दिल्ली के इंद्रप्रस्थ कॉलेज में प्राध्यापिका के पद से उन्होंने अपने कार्य-जीवन का प्रारंभ किया। बाद में वे क्रमशः रीडर तथा प्राधानाचार्या के पद पर आसीन हुईं।

वे सुप्रसिद्ध साहित्यकार सीतेश आलोक की पत्नी थीं।

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