उर्मिला शिरीष हमारे दौर की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कथाकारों में से एक हैं. उन्होंने ढेरों कहानियां लिखीं और हर वर्ग द्वारा सराही गईं.
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आज तक
उर्मिला शिरीष का परिचय
अगर उनका औपचारिक परिचय लिखें तो, उर्मिला शिरीष का जन्म 9 अप्रैल, 1959 को मध्य प्रदेश में हुआ. उन्होंने हिंदी से एम.ए. पी.एचडी. और डी.लिट्. की उपाधि आद्योपान्त प्रथम श्रेणी में प्राप्त की. उनके द्वारा लिखी या संपादित पुस्तकों की गिनती दो दर्जन के आसपास पहुंचने ही वाली हैं. इनमें कहानी संग्रह- ‘बिवाईयाँ तथा अन्य कहानियाँ’, ‘उर्मिला शिरीष की श्रेष्ठ कहानियाँ’, ‘दीवार के पीछे’, ‘मेरी प्रिय कथाएँ’, ‘ग्यारह लंबी कहानियाँ’, ‘कुर्की और अन्य कहानियाँ’, ‘लकीर तथा अन्य कहानियाँ’, ‘पुनरागमन’, ‘निर्वासन’, ‘रंगमंच’, ‘शहर में अकेली लड़की’, ‘सहमा हुआ कल’, ‘केंचुली’, ‘मुआवजा’, ‘वे कौन थे के’ अलावा प्रख्यात लेखक गोविन्द मिश्र की जीवनी ‘बयावाँ में बहार’ और साहित्यकारों से साक्षात्कार ‘शब्दों की यात्रा के साथ’ शामिल है. यही नहीं उर्मिला शिरीष ने ‘खुशबू’ और ‘धूप की स्याही’ नामक कहानी संग्रहों का संपादन भी किया. उनके द्वारा संपादित अन्य पुस्तकों में ‘प्रभाकर श्रोत्रिय: आलोचना की तीसरी परम्परा’, ‘हिंदी भाषा एवं समसामयिकी’ तथा ‘सृजनयात्रा: गोविन्द मिश्र’ शामिल है.
साहित्य सृजन व लेखन के लिए उन्हें अब तक म.प्र. साहित्य अकादमी का अखिल भारतीय मुक्तिबोध पुरस्कार, कमलेश्वर कथा सम्मान, रामदास तिवारी सम्मान, कृष्ण प्रताप कथा सम्मान, शैलेष मटियानी चित्रा कुमार कथा सम्मान, विजय वर्मा कथा पुरस्कार, निर्मल पुरस्कार, भगवत प्रसाद स्मृति साहित्य सम्मान, डॉ. बलदेव मिश्र पुरस्कार, वागीश्वरी पुरस्कार और समर स्मृति साहित्य पुरस्कार से नवाजा जा चुका है.
वर्तमान में भोपाल क़ॅ शासकीय महारानी लक्ष्मीबाई कन्या स्नातकोत्तर (स्वशासी) महाविद्यालय में हिंदी की प्राध्यापक उर्मिला शिरीष की कुछ कहानियों का उर्दू, अंग्रेज़ी, पंजाबी, सिन्धी तथा ओड़िया आदि भाषाओं अनुवाद भी हो चुका है. दूरदर्शन ने जहां कहानी ‘पत्थर की लकीर’ पर टेली-फ़िल्म बनाया वहीं बैंगलोर की संस्था ‘कलायान’ ने ‘धरोहर’ कहानी पर ‘जो पीछे छूट जाते हैं’ शीर्षक से नाट्य मंचन भी किया है. यही नहीं बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय, राजस्थान विश्वविद्यालय, महाराष्ट्र, केरल, कर्नाटक, विक्रम विश्वविद्यालय एवं बरकतउल्लाह आदि विश्वविद्यालयों में ‘उर्मिला शिरीष के कथा साहित्य’ पर कई छात्र पीएच.डी. तथा एम.फिल उपाधि प्राप्त कर चुके हैं और अनेक विद्यार्थियों द्वारा यह शोध का यह सिलसिला जारी है.
अनेक राष्ट्रीय पुरस्कारों तथा सम्मानों की समिति में निर्णायक की भूमिका के साथ ही कई सामाजिक और साहित्यिक संस्थाओं से जुड़ी कथाकार- लेखक – प्राध्यापक उर्मिला शिरीष से उनके जन्मदिन पर साहित्य आजतक ने बातचीत की. अंशः
कहानी संग्रह
- रंगमंच
- निर्वासन (2005)