लाला श्रीनिवास दास (1850-1907) हिंदी के प्रथम उपन्यास के लेखक है. उनके द्वारा लिखे गए उपन्यास का नाम परीक्षा गुरू (हिन्दी का प्रथम उपन्यास) है जो 25 नवम्बर 1882 को प्रकाशित हुआ. लाला श्रीनिवास दास भारतेंदु युग के प्रसिद्ध नाटककार भी थे.
नाटक लेखन में लाला श्रीनिवास दास भारतेंदु के समकक्ष माने जाते हैं.
वे उत्तरप्रदेश राज्य के मथुरा जिले के निवासी थे और हिंदी, उर्दू, संस्कृत, फारसी एवं अंग्रेजी भाषा के अच्छे ज्ञाता थे. उनके द्वारा रचित नाटकों में प्रह्लाद चरित्र, तप्ता संवरण, रणधीर और प्रेम मोहिनी और संयोगिता स्वयंवर प्रमुख नाटक हैं.
1974 में रामदरस मिश्रा ने लाला श्रीनिवास दास द्वारा लिखित परीक्षा गुरू को पुनः प्रकाशित किया था.
लाला श्रीनिवास दास का उपन्यास परीक्षा गुरु
परीक्षा गुरु उपन्यास सभ्रांत परिवारों के युवाओं को बुरी संगत के खतरनाक प्रभाव और परिणामस्वरूप गिरती नैतिकता के प्रति आगाह करता है. उस दौरान उभरते हुए मध्य वर्ग के आंतरिक और बाहरी दुनिया को दर्शाता है। इस उपन्यास में अपनी सांस्कृतिक पहचान को बचाए रखने के लिए औपनिवेशिक समाज को अपनाने में होने वाली कठिनाइयों को बख़ूबी दर्शाया गया है.
हालांकि परीक्षा गुरु लाला श्रीनिवास द्वारा स्पष्ट रूप से ‘पढ़ने की खुशी’ के लिए विशुद्ध रूप से लिखा गया था.
उपन्यास पाठक को जीने के सही तरीके को सिखाने की कोशिश करता है और सभी समझदार पुरुषों को सांसारिक बुद्धिमान और व्यावहारिक होने की उम्मीद करता है. उपन्यास अपनी परंपरा और संस्कृति के मूल्यों के साथ-साथ सम्मान के साथ जीने के लिए प्रेरित करता है.
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