Posted on: July 13, 2021 Posted by: लिटरेचर इन इंडिया Comments: 0
ismat chugtai

इस्मत चुग़ताई | Ismat Chughtai

इस्मत चुग़ताई (उर्दू: عصمت چغتائی‎) (जन्म: 21 अगस्त 1915-निधन: 24 अक्टूबर 1991) भारत से उर्दू की एक लेखिका थीं। उन्हें ‘इस्मत आपा’ के नाम से भी जाना जाता है। वे उर्दू साहित्य की सर्वाधिक विवादास्पद और सर्वप्रमुख लेखिका थीं, जिन्होंने महिलाओं के सवालों को नए सिरे से उठाया। उन्होंने निम्न मध्यवर्गीय मुस्लिम तबक़े की दबी-कुचली सकुचाई और कुम्हलाई लेकिन जवान होती लड़कियों की मनोदशा को उर्दू कहानियों व उपन्यासों में पूरी सच्चाई से बयान किया है।

इस्मत चुग़ताई का जीवन परिचय

उनका जन्म 21 अगस्त 1915 को उत्तर प्रदेश के बदायूं में हुआ। [1] उनकी कहानी लिहाफ़ के लिए लाहौर हाईकोर्ट में उन पर मुक़दमा चला। जो बाद में ख़ारिज हो गया। उर्दू साहित्य की दुनिया में ‘इस्मत आपा’ के नाम से विख्यात इस लेखिका का निधन 24 अक्टूबर 1991 को हुआ। उनकी वसीयत के अनुसार मुंबई के चन्दनबाड़ी में उन्हें अग्नि को समर्पित किया गया।

उनकी पहली कहानी- गेन्दा, जिसका प्रकाशन 1949 में उस दौर की उर्दू साहित्य की सर्वोत्कृष्ट साहित्यिक पत्रिका ‘साक़ी’ में हुआ और पहला उपन्यास- ज़िद्दी 1941 में प्रकाशित हुआ।

इस्मत चुग़ताई द्वारा साहित्य सृजन

कहानी संग्रह

  1. चोटें
  2. छुईमुई
  3. एक बात
  4. कलियाँ
  5. एक रात
  6. दो हाथ दोज़खी
  7. शैतान
  8. जड़े

उपन्यास

  1. टेढी लकीर
  2. जिद्दी
  3. एक कतरा ए खून
  4. दिल की दुनिया
  5. मासूमा
  6. बहरूप नगर
  7. सैदाई
  8. जंगली कबूतर
  9. अजीब आदमी
  10. बांदी

आत्मकथा

  1. ‘कागजी हैं पैराहन’

चलचित्र के क्षेत्र में इस्मत चुग़ताई

उन्होंने अनेक चलचित्रों की पटकथा लिखी औरजुगनूमें अभिनय भी किया। उनकी पहली फिल्म “छेड़-छाड़”1943में आई थी। वे कुल 13 फिल्मों से जुड़ी रहीं। उनकी आख़िरी फ़िल्म “गर्म हवा” (1973) को कई पुरस्कार मिले।

इस्मत चुग़ताई की रचनात्मक वैशिष्ट्य

इस्मत का कैनवास काफी व्यापक था जिसमें अनुभव के विविध रंग उकेरे गए हैं। ऐसा माना जाता है कि “टेढी लकीरे” उपन्यास में उन्होंने अपने ही जीवन को मुख्य प्लाट बनाकर एक स्त्री के जीवन में आने वाली समस्याओं और स्त्री के नजरिए से समाज को पेश किया है। वे अपनी ‘लिहाफ’ कहानी के कारण खासी मशहूर हुईं। 1941 में लिखी गई इस कहानी में उन्होंने महिलाओं के बीच समलैंगिकता के मुद्दे को उठाया था। उस दौर में किसी महिला के लिए यह कहानी लिखना एक दुःस्साहस का काम था। इस्मत को इस दुःस्साहस की कीमत अश्लीलता को लेकर लगाए गए इलजाम और मुक़दमे के रूप में चुकानी पड़ी।

उन्होंने आज से करीब 70 साल पहले पुरुष प्रधान समाज में स्त्रियों के मुद्दों को स्त्रियों के नजरिए से कहीं चुटीले और कहीं संजीदा ढंग से पेश करने का जोखिम उठाया। उनके अफसानों में औरत अपने अस्तित्व की लड़ाई से जुड़े मुद्दे उठाती है। साहित्य तथा समाज में चल रहे स्त्री विमर्श को उन्होंने आज से 70 साल पहले ही प्रमुखता दी थी। इससे पता चलता है कि उनकी सोच अपने समय से कितनी आगे थी। उन्होंने अपनी कहानियों में स्त्री चरित्रों को बेहद संजीदगी से उभारा और इसी कारण उनके पात्र जिंदगी के बेहद करीब नजर आते हैं।

स्त्रियों के सवालों के साथ ही उन्होंने समाज की कुरीतियों, व्यवस्थाओं और अन्य पात्रों को भी बखूबी पेश किया। उनके अफसानों में करारा व्यंग्य मौजूद है।

इस्मत चुग़ताई की भाषा-शैली

उन्होंने ठेठ मुहावरेदार गंगा जमुनी भाषा का इस्तेमाल किया जिसे हिंदी उर्दू की सीमाओं में कैद नहीं किया जा सकता। उनका भाषा प्रवाह अद्भुत है और इसने उनकी रचनाओं को लोकप्रिय बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने स्त्रियों को उनकी अपनी जुबान के साथ अदब में पेश किया।

उनकी रचनाओं में सबसे आकर्षित करने वाली बात उनकी निर्भीक शैली थी। उन्होंने अपनी रचनाओं में समाज के बारे में निर्भीकता से लिखा और उनके इसी दृष्टिकोण के कारण साहित्य में उनका खास मुकाम बना।

इस्मत चुग़ताई का उर्दू साहित्य में स्थान

उर्दू साहित्य में सआदत हसन मंटो, इस्मत, कृष्ण चंदर और राजेन्दर सिंह बेदी को कहानी के चार स्तंभ माना जाता है। इनमें भी आलोचक मंटो और चुगताई को ऊँचे स्थानों पर रखते हैं क्योंकि इनकी लेखनी से निकलने वाली भाषा, पात्रों, मुद्दों और स्थितियों ने उर्दू साहित्य को नई पहचान और ताकत बख्शी।

इस्मत साहित्य पर अन्य काम

हिंदी में “कुँवारी” व अन्य कई कहानी-संग्रह तथा अंग्रेजी में उनकी कहानियों के तीन संग्रह प्रकाशित हुए। इनमें “काली” काफ़ी मशहूर हुआ।

कहानीकार शबनम रिज़वी ने इस्मत की दर्जनों कहानियों के हिन्दी अनुवाद तथा उपन्यास “टेढ़ी लकीर” का लिप्यान्तरण किया है। उर्दू में उनकी पुस्तक ‘इस्मत चुग़ताई की नावेलनिगारी’ 1992 में दिल्ली से प्रकाशित हुई। वे हिन्दी में इस्मत चुग़ताई ग्रन्थावली की तैयारी कर रही हैं।

इस्मत चुग़ताई को पुरस्कार/सम्मान

1974- गालिब अवार्ड, टेढ़ी लकीर पर

[1976] पद्म श्री

साहित्य अकादमी पुरस्कार

‘इक़बाल सम्मान’,

मखदूम अवार्ड

नेहरू अवार्ड

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