
जो भी कमज़ोर हैं
मुश्किलों में हैं सब
सियासतदारों ने तो
मुँह हैं उधर कर लिया
किससे बोले अब हम
किसको बताएँ ये सब
दिलों के कोनों में
सियासत ने ज़हर भर दिया
काफी मुद्दत से जो
न हम कह सके
उससे हमको ही उसने
बेख़बर कर दिया
अब लिखते हैं तो
कम पढ़तें हैं लोग
हवा के झोकों ने
बेफिकर कर दिया
कोई बताये ये
जाकर उनसे कभी
रात को भी हमने
सहर कर लिया
अब तो आहें भी
भरते हैं सादगी से बड़ी
दर्द को भी हमने
हमसफ़र कर लिया
अब न पूछे कोई
न ही जवाब है अब
रोज के किस्सों ने
आवाज़ बेअसर कर दिया