Posted on: June 22, 2019 Posted by: लिटरेचर इन इंडिया Comments: 2
ये भी एक माध्यम है मेरी देह की अनन्त यात्रा को मापने के लिए।

ये जो काले रंग का कुर्ता है

उसे कभी फेंकती नहीं मैं

न तो किसी को देती हूँ।

ये भी एक माध्यम है

मेरी देह की अनन्त यात्रा

को मापने के लिए।

जो कभी शंकु हुआ करता था

ये कुर्ता सी समय से आधार है,

तय करने को मेरी देह रचना

जो अब शंकु से दीर्घाकार हो चली है।

देह अपनी रचना बदलती है।

मन अक्षुण्ण ही रह जाता है।

देह की बदलती रचना ही

तय करती है लोगों का नजरिया,

उनकी मानसिकता और व्यवहार।

गौरतलब है कि अक्षुण्ण मन तक

पहुंच नहीं पता कोई रचनाकार।

देह की संस्कृति तक ही सीमित है

उसके सोच की अनन्त यात्रा।

स्त्री देह ही नापी जाती है

बदलती रचना के अनुकूल।

कोई करता नहीं पुरुषों को अस्वीकृत,

बढ़ती उम्र और बेडौल हो रही संरचना को।

उनके झुर्री भरे चेहरे और ढीला पड़ चुका अंग,

पात्र ही नहीं है आलोचना के लेकिन,

स्त्री देह बाल्यावस्था से प्रौढ़ावस्था फिर

वृद्धावस्था तक आलोच्य है।

दुनियां की अनगिनत निगाहों द्वारा।

कभी शोषित, कभी ठुकराई तो कभी

अपमानित देह तक ही सीमित है।

उसके अक्षुण्ण मन, उसका समर्पण और

सृजन के फलस्वरूप उभर चुके

दैहिक निशान ही बहुत हैं

उनके देह की अनन्त यात्रा को

तिलांजलि देने के लिए।

डॉ. चित्रलेखा अंशु

पोस्ट डॉक्टरल फेलो,

इग्नू, नई दिल्ली

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