Posted on: January 22, 2015 Posted by: लिटरेचर इन इंडिया Comments: 0
भगवान अगले जन्म मुझे बेटी न बनाना

भगवान अगले जन्म मुझे बेटी ना बनाना
भगवान अगले जन्म मुझे बेटी ना बनाना
कुछ अपने घरों में हर साल कन्या पूजन करवाते हैं
कुछ बेदर्दी कोख में बेटी मारने की दूकान चलाते हैं
क्यों बेटों की चाह को हम, मन में पालते हैं?
अपनी बेटियों को क्यों नही हम संभालते हैं?

क्या बेटी होना पाप है? कोई मुझे समझाना
भगवान् अगले जन्म मुझे बेटी ना बनाना
भगवान् अगले जन्म मुझे बेटी ना बनाना
अगर बेटी जन्म ले ले, तो ताने सहती है
बेटी घर का बोझ है, दुनिया ये कहती है
अपने ही घर से निकलना भी दुश्वार है
अपने ही माँ बाप का ये कैसा प्यार है?

बेटियाँ बोझ नही है, दुनियाँ को ये है बताना
भगवान् अगले जन्म मुझे बेटी ना बनाना
भगवान् अगले जन्म मुझे बेटी ना बनाना
अपना ये कैसा नंगा संसार है?
जहां होती आबरू तार-तार है
पूजा करें सरस्वती, काली, माता शेरोवाली की
कस्मे खाते है सभी बेटियोँ की रखवाली की
औरत को देखते ही, क्यों बदलता है ज़माना?

भगवान अगले जन्म मुझे बेटी ना बनाना
भगवान अगले जन्म मुझे बेटी ना बनाना
इस पत्थर दुनियाँ का नही कोई जवाब है
बेटियोँ के लिए ये दुनियाँ बड़ी खराब है
आज का इन्सान खुद को कहता भगवान् है
बेटियों के लिए हर मन में शैतान है
कब होगा बंद ? बेटियोँ पर ज़ुल्म ढाना

भगवान अगले जन्म मुझे बेटी ना बनाना
भगवान अगले जन्म मुझे बेटी ना बनाना
धन- दौलत ना मेरे बाबुल के पास है
ये सोच कर ससुराल में बेटी उदास है
दहेज़ की नित नई-नई मांगे होती हैं
अकेले में बैठी बेटी दिन-रात रोती है

कब बंद दहेज़ होगा?
कब होगा बंद बेटियों को जलाना?
भगवान अगले जन्म मुझे बेटी ना बनाना
भगवान अगले जन्म मुझे बेटी ना बनाना

2 –

मेरी बेटी थोड़ी सी बड़ी हो गई है
कुछ जिद्दी, कुछ नक् चढ़ी हो गई है
मेरी बेटी थोड़ी सी बड़ी हो गई है
अब अपनी हर बात मनवाने लगी है
हमको ही अब वो समझाने लगी है
हर दिन नई नई फरमाइशें होती है

लगता है कि फरमाइशों की झड़ी हो गई है
मेरी बेटी थोड़ी सी बड़ी हो गई है
अगर डाटता हूँ तो आखें दिखाती है
खुद ही गुस्सा करके रूठ जाती है
उसको मनाना बहुत मुश्किल होता है

गुस्से में कभी पटाखा कभी फूलझड़ी हो गई है
मेरी बेटी थोड़ी सी बड़ी हो गई है
जब वो हस्ती है तो मन को मोह लेती है
घर के कोने कोने मे उसकी महक होती है
कई बार उसके अजीब से सवाल भी होते हैं

बस अब तो वो जादू की छड़ी हो गई है
मेरी बेटी थोड़ी सी बड़ी हो गई है
घर आते ही दिल उसी को पुकारता है
“राज” सपने सारे अब उसी के संवारता है
दुनियाँ में उसको अलग पहचान दिलानी है
मेरे कदम से कदम मिलाकर वो खड़ी हो गई है
मेरी बेटी थोड़ी सी बड़ी हो गई है


राजीव शर्मा “राज”

गाँव -घुमैत, डाक- कूमकलां

जिला – लुधियाना (पंजाब)

अगर आप भी लिखते है तो हमें ज़रूर भेजे, हमारा पता है:

साहित्य: team@literatureinindia.in

हमारे प्रयास में अपना सहयोग अवश्य दें,फेसबुकपर अथवाट्विटरपर हमसे जुड़ें

Leave a Comment