Category: सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’

Posted on: November 18, 2019 Posted by: लिटरेचर इन इंडिया Comments: 0

विकल्प – अज्ञेय

वेदी तेरी पर माँ, हम क्या शीश नवाएँ? तेरे चरणों पर माँ, हम क्या फूल चढ़ाएँ? हाथों में है खड्ग हमारे, लौह-मुकुट है सिर पर- पूजा को ठहरें या समर-क्षेत्र को जाएँ? मन्दिर तेरे में माँ, हम क्या दीप जगाएँ? कैसे तेरी प्रतिमा की हम ज्योति बढ़ाएँ? शत्रु रक्त की प्यासी है यह ढाल हमारी दीपक- आरति को ठहरें या रण-प्रांगण में जाएँ? – दिल्ली जेल, सितम्बर, 1931 विकल्प –…

Posted on: January 22, 2015 Posted by: लिटरेचर इन इंडिया Comments: 0

मेरे देश की आँखें – अज्ञेय

नहीं, ये मेरे देश की आँखें नहीं हैं पुते गालों के ऊपर नकली भवों के नीचे छाया प्यार के छलावे बिछाती मुकुर से उठाई हुई मुस्कान मुस्कुराती ये आँखें – नहीं, ये मेरे देश की नहीं हैं… तनाव से झुर्रियाँ पड़ी कोरों की दरार से शरारे छोड़ती घृणा से सिकुड़ी पुतलियाँ – नहीं, ये मेरे देश की आँखें नहीं हैं… वन डालियों के बीच से चौंकी अनपहचानी कभी झाँकती…